O APS ! O APS !
We belong to this you see
This belongs to us you see,
So we plan, so we work
To better our personality
Col Satsangi our guide
Top of the crest we ride
Budhwa Baba's blessing we have
"Strive to rise" our pride
Living and working 'Rough & Tough'
And not the facility enjoyers
"Problem solveres" we shall be
Ready to manage best and worst
Dear complex our blood shall be
Spilled upon thy sand
Than shame the honour & dignity
of our Dear, Dear Motherland.
O APS ! O APS !
Honour & Valour be thine
May your name forever be
Remembered & enshrined
Be the best
Be the best
O APS ! O APS !
बसा रतनपुरा अंचल में यह,
ए0पी0एस0 हमारा है।
ज्ञान का कंुज और आशा की नई ज्योति यह,
शैक्षणिक स्थान हमारा है।
नित नूतन नूतन कार्यक्रमों पर,
अवध-आशा के संरक्षण में
उनके आदर्शो के कारण ही
यह आगे बढ़ता जाता है।
कर्नल सत्संगी से प्रेरित होकर,
इस विद्यालय की नीव पड़ी
अपने क्षेत्र का स्वर्णिम गौरव
यह कहलाता है।
बुढ़वा बाबा के मंदिर को देखो,
तीव्र गति से भव्य हो रहा।
सतत् परिश्रम कर उन्नति का,
सीधा पथ दर्शाता है।
ईश्वर अब वर हमें दो,
अपना लक्ष्य प्राप्त करे ।
पूरी हो सबकी आशाएँ,
हृदय यही गाता है।
खेल-खेल में नैतिक जीवन मूल्य सीखकर,
अथक परिश्रम करना हमको आता है।
सहयोग, संगठन और संयम ही
हमको सफल बनाता है।
बसा रतनपुरा अंचल में यह,
ए0पी0एस0 हमारा है।
जन-गण-मन अधिनायक जय हे।
भारत-भाग्य विधाता।
पंजाब-सिन्धु-गुजरात-मराठा।
द्राविड़ उत्कल बंग।
विन्ध्य हिमाचल, यमुना-गंगा।
उच्छल जलधि तरंग।
तव शुभ नामे जागे।
तब शुभ आशीष मांगे।
गाहे तब जय गाथा।
जन-गण मंगल दायक जय हे।
भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे।
जय, जय, जय, जय हे।
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना (2)
हम चले नेक रस्ते पे हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो ना। इतनी...
दूर अज्ञान के हो अन्धेरे, तू हमे ज्ञान की रोंशनी दे।
हर बुराई से बचके रहंे हम
जितनी भी दे भली जिन्दगी दे।
बैर हो ना किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की होना। हम चले...।
हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाटें सभी को
सबका जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी करूणा का जल तू बहा के
कर दे पावन हर एक मन का कोना।। हम चले...।
होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन........
हो हो, मन में है, विश्वास पूरा हैं विश्वास
हम होंगे कामयाब, एक दिन........
हम चलेंगे साथ-साथ, डाल हाथों में हाथ।
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन........
हो हो, मन में है, विश्वास पूरा है, विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन........
नहीं डर किसी का आज, नहीं भय किसी का आज,
नहीं डर किसी का आज के दिन..........
हो हो, मन में है, विश्वास पूरा है, विश्वास
नहीं डर किसी का आज के दिन..........।
होगी शान्ति चारो ओर, होगी शान्ति चारो ओर।
होगी शान्ति चारो ओर एक दिन........
हो हो, मन में है, विश्वास पूरा है, विश्वास
होगी शान्ति चारो ओर एक दिन........
होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब, एक दिन........
हो हो, मन में है, विश्वास पूरा है, विश्वास
हम होंगे कामयाब, एक दिन। हम होंगे..........
India is my country. All Indians are my brothers and sisters. I love my
Country, and I am proud of its rich and varied heritage. I shall always strive to be
worthy of it. I shall respect my parents, teachers and all elders treat everyone with
courtesy. To my country and all my people, I pledge my devotion. In their well being
and prosperity alone, lies my happiness.
Where TheMind IsWithout Fea
Where the mind is without fear and the head is held high
Where knowledge is free
Where the world has not been broken up into fragments
By narrow domestic walls
where words come out from the depth of truth
Where tireless striving stretches its arms towards perfection
Where the clear stream of reason has not lost its way
into the dreary desert sand of dead habit
Where the mind is led forward by thee
into ever-widening thought and action
Into that heaven of freedom, my Father, Iet my country awake
कोशिश कर, हल निकलेगा। आज नहीं तो कल निकलेगा ।
अर्जुन के तीर सा सध, मरूस्थल से भी जल निकलेगा ।।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे, बंजर जमीन से भी फल निकलेगा ।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे, जिन्दा रख दिल में उम्मीदों को,
गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा ।
कोशिश जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा-थमा-सा, चल निकलेगा ।
Two roads diverged in a yellow wood,
And Sarry I could not travel both
And be one travelers long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;
Then took the other, as just as fair
And having perhaps the better claim,
Because it was grassy and wanted wear;
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,
And both that morning equally lay
In leaves on step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way,
I doubted if I should ever come back.
I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence.
Two roads diverged in a wood, and II took the one less traveled by,
And that has made all the difference